कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे,
ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे।
नन्हें होंठों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब,
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे।
ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक,
साँवले हाथों को भी रंग-ए-हिना रौशन करे।
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए,
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे।
ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चिराग,
तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे।
-- इरफ़ान सिद्दीक़ी (1939-2004)
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