चढ़दे सूरज - Bulleh Shah Shayari - शायरी संग्रह - Shayari Sangrah

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चढ़दे सूरज - Bulleh Shah Shayari

चढ़दे सूरज - Bulleh Shah Shayari

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फकीर बुलेशाह से जब किसी ने पूछा कि आप इतनी गरीबी में भी भगवान का शुक्रिया कैसे करते हैं तो बुलेशाह ने कहा..

चढ़दे सूरज ढलदे देखे,
 बुझदे दीवे बलदे देखे ।
हीरे दा कोइ मुल ना जाणे,
 खोटे सिक्के चलदे देखे ।
जिना दा न जग ते कोई,
 ओ वी पुत्तर पलदे देखे ।
उसदी रहमत दे नाल बंदे,
 पाणी उत्ते चलदे देखे ।
लोकी कैंदे दाल नइ गलदी,
 मैं ते पत्थर गलदे देखे ।
जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी,
 हथ खाली ओ मलदे देखे ।
कई पैरां तो नंगे फिरदे,
 सिर ते लभदे छावा...
मैनु दाता सब कुछ दित्ता,
 क्यों ना शुकर मनावा...

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