तेरे हसीन तस्सवुर का आसरा लेकर,
दुखों के काँटे में सारे समेट लेता हूँ,
तुम्हारा नाम ही काफी है राहत-ए-जान को,
जिससे ग़मों की तेज़ हवाओं को मोड़ देता हूँ।
दुखों के काँटे में सारे समेट लेता हूँ,
तुम्हारा नाम ही काफी है राहत-ए-जान को,
जिससे ग़मों की तेज़ हवाओं को मोड़ देता हूँ।
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