कुछ दिनों की बेकरारी, कुछ ही दिनों का रोना था।
आखिर पत्थर दिल को, पत्थरों के साथ ही होना था।।
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कुछ होते हैं काबिल जो शेर सुना करते हैं ,.,
कुछ होते हैं आशिक़ जो ग़ज़ल कहा करते हैं ,.,!!!
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खुले थे दिल के दरवाज़े.. मोहब्बत भी चली गयी !!
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तेरी नफरतों ने आज मेरा जीना आसाँ कर दिया
तेरी मोहब्बत में तो जीना दुश्वार ही था मेरा,.,!!
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सुलझा रहा हूँ एक एक करके सारी उलझनें,
जाने क्या होगा जब इश्क से सामना होगा ..!!!
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कभी जो मिले फुरसत तो बताना ज़रूर ऐ जालिम.....
वो कौनसी मुहब्बत थी, जो हम तुम्हे दे
ना सके...!!!
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ये किसको फिक्र है क़बीले का क्या होगा ??
सब इसपे लड़ रहे हैं के "सरदार कौन होगा ??
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उनकी छत पर गये थे हम कटी हुई पतंग लुटनै
नज़रे मिल गयी उनसै और
वो कहने लगी
'सुनो तुम '
पतंग लुटनै आयै हौ या दिल .....!!!
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ये सारा खेल था जो वक्त के शातिर ने खेला है,
न कुछ उसकी ख़ता है, न कुछ अपनी ख़ता है ..!!!
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माँ..
फिर से मुझे मेरा बस्ता दे दे,.,
के दुनिया का दिया सबक बहुत मुश्किल है ....!!
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ढूंढी हमने खुशबू बोतलों मे कई बार,.,
शायद आज भी नही मिलती बाजार में महक तेरे बालों की,.,!!!
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मुद्दत से उस की छाँव में बैठा नहीं कोई,.,
वो सायादार पेड़ इसी ग़म में मर गया,.,.!!!
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अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूँ,.,
अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूँ,.,!!!
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ख्वाइश बस इतनी सी हें की तुम मेरे लफ्ज़ो को समजो
आरज़ू ये नहीं की लोग वाह वाह करे.!!
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क्या उस गली में कभी तेरा जाना हुआ,
जहाँ से जमाने को गुजरा जमाना हुआ.....???
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आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है,
अपने शर्तो पे ज़िन्दगी जीने का नशा ही कुछ और हैं .!!
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राख पर अब उनकी लहराएँ समंदरभी तो क्या..
सो गए जो उम्र भर हसरत लिए बरसात की,.,!!!
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मुझे ऊंचाइयों पे देख कर हैरान हैं बहुत लोग ,.,
पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे ,.,!!!
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किस रावण की काटूं बाहें,
किस लंका को आग लगाऊँ,.,
घर घर रावण पग पग लंका,
इतने राम कहाँ से लाऊँ,.,.!!!
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सहारा लेना पड़ता है दरिया का,
मैं कतरा हूँ, अकेले बह नहीं सकता..!!!
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मोहब्बत और नफरत में कोई अंतर नही
तुझे देखता हूँ तो दोनों एक से लगते है ...!!!
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काफ़िर तेरी निगाह ने वोह काम कर दिया
पीने-- लगा- जो ज़हर- उसे जाम कर दिया,.,!!
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वो जहर देता तो सबकी नज़र में आ जाता,.,
फिर यूँ किया उसने कि वक्त पर दवा न दी,.,!!!
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अब आओ कलेजे से लिपट कर मेरे सो जाओ,.,
बाहर कहाँ जाओगे बड़ी सर्द हवा है ,.,.!!!
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फितरत किसी की यूँ ना आजमाया कर..
हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है...।।!
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बीच सड़क पर क्यु चलती हैं तु पतली कमर लहरा के ,.,
खुद भी मरेगी मुझे भी मरवायेगी मेरी गाड़ी नीचे आके ,.,!!!
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बदल चुके हैं मौहल्ले के सभी कोने,,
मेरे बचपन का आखरी निशां भी गया !!
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फरेबी भी हूँ,जिद्दी भी हूँ,
और पत्थर दिल भी हूँ,
मासूमियत खो दी है मैंने,
वफा करते करते..!!
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तुम मेरे दर्द को मिटा दोगी एक दिन,,
इसी उम्मीद में जख्म संभाले है अब तक,.,!!!
आखिर पत्थर दिल को, पत्थरों के साथ ही होना था।।
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कुछ होते हैं काबिल जो शेर सुना करते हैं ,.,
कुछ होते हैं आशिक़ जो ग़ज़ल कहा करते हैं ,.,!!!
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खुले थे दिल के दरवाज़े.. मोहब्बत भी चली गयी !!
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तेरी नफरतों ने आज मेरा जीना आसाँ कर दिया
तेरी मोहब्बत में तो जीना दुश्वार ही था मेरा,.,!!
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सुलझा रहा हूँ एक एक करके सारी उलझनें,
जाने क्या होगा जब इश्क से सामना होगा ..!!!
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कभी जो मिले फुरसत तो बताना ज़रूर ऐ जालिम.....
वो कौनसी मुहब्बत थी, जो हम तुम्हे दे
ना सके...!!!
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ये किसको फिक्र है क़बीले का क्या होगा ??
सब इसपे लड़ रहे हैं के "सरदार कौन होगा ??
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उनकी छत पर गये थे हम कटी हुई पतंग लुटनै
नज़रे मिल गयी उनसै और
वो कहने लगी
'सुनो तुम '
पतंग लुटनै आयै हौ या दिल .....!!!
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ये सारा खेल था जो वक्त के शातिर ने खेला है,
न कुछ उसकी ख़ता है, न कुछ अपनी ख़ता है ..!!!
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माँ..
फिर से मुझे मेरा बस्ता दे दे,.,
के दुनिया का दिया सबक बहुत मुश्किल है ....!!
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ढूंढी हमने खुशबू बोतलों मे कई बार,.,
शायद आज भी नही मिलती बाजार में महक तेरे बालों की,.,!!!
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मुद्दत से उस की छाँव में बैठा नहीं कोई,.,
वो सायादार पेड़ इसी ग़म में मर गया,.,.!!!
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अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूँ,.,
अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूँ,.,!!!
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ख्वाइश बस इतनी सी हें की तुम मेरे लफ्ज़ो को समजो
आरज़ू ये नहीं की लोग वाह वाह करे.!!
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क्या उस गली में कभी तेरा जाना हुआ,
जहाँ से जमाने को गुजरा जमाना हुआ.....???
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आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है,
अपने शर्तो पे ज़िन्दगी जीने का नशा ही कुछ और हैं .!!
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राख पर अब उनकी लहराएँ समंदरभी तो क्या..
सो गए जो उम्र भर हसरत लिए बरसात की,.,!!!
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मुझे ऊंचाइयों पे देख कर हैरान हैं बहुत लोग ,.,
पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे ,.,!!!
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किस रावण की काटूं बाहें,
किस लंका को आग लगाऊँ,.,
घर घर रावण पग पग लंका,
इतने राम कहाँ से लाऊँ,.,.!!!
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सहारा लेना पड़ता है दरिया का,
मैं कतरा हूँ, अकेले बह नहीं सकता..!!!
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मोहब्बत और नफरत में कोई अंतर नही
तुझे देखता हूँ तो दोनों एक से लगते है ...!!!
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काफ़िर तेरी निगाह ने वोह काम कर दिया
पीने-- लगा- जो ज़हर- उसे जाम कर दिया,.,!!
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वो जहर देता तो सबकी नज़र में आ जाता,.,
फिर यूँ किया उसने कि वक्त पर दवा न दी,.,!!!
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अब आओ कलेजे से लिपट कर मेरे सो जाओ,.,
बाहर कहाँ जाओगे बड़ी सर्द हवा है ,.,.!!!
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फितरत किसी की यूँ ना आजमाया कर..
हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है...।।!
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बीच सड़क पर क्यु चलती हैं तु पतली कमर लहरा के ,.,
खुद भी मरेगी मुझे भी मरवायेगी मेरी गाड़ी नीचे आके ,.,!!!
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बदल चुके हैं मौहल्ले के सभी कोने,,
मेरे बचपन का आखरी निशां भी गया !!
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फरेबी भी हूँ,जिद्दी भी हूँ,
और पत्थर दिल भी हूँ,
मासूमियत खो दी है मैंने,
वफा करते करते..!!
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तुम मेरे दर्द को मिटा दोगी एक दिन,,
इसी उम्मीद में जख्म संभाले है अब तक,.,!!!
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